‘एक वेळ अशीही आली की वाटलं एक्टींग सोडून द्यावी’

‘एक वेळ अशीही आली की वाटलं एक्टींग सोडून द्यावी’

राज्यसभा टीव्ही नावाचं एक चॅनेल आहे. त्यावर एक कार्यक्रम लागतो. कार्यक्रमाचं नाव गुफ्तगू. कलाकारांच्या मुलाखतीचा हा कार्यक्रम इरफान नावाचे एक ज्येष्ठ सिनेपत्रकार करतात. त्यांनी इरफान खानची घेतलेली मुलाखत जशीच्या तशी हिंदीत शब्दबद्ध करत आहोत. या मुलाखतीत इरफान खानने सिनेमाकडे पाहण्याचा त्याचा एक वेगळाच दृष्टीकोन सांगितला. इरफान खान सिनेमाकडे वळला कसा, याची गोष्ट या मुलाखतीत सापडते.

एक अदाकार जो बदल रहा है अदाकारी का चलन,
जिसके लिए फिल्मे सिर्फ एक रोजगार का जरीया नही है.
हर किरदार में वो एक नयी जा फूंक देता है
इरफान .. एक्टींग की दुनिया का एक अनोखा नाम

इरफान (Irfan khan)जिन्होंने अपनी जिद और लगन से अदाकारी मे वो मुक्काम हासिल किया है, जहा उन जैसा फिलहाल दुसरा कोई नहीं है…

प्रश्न – आपका बचपन कहा गुजरा इरफान

इरफान – बचपन जो है मेरा जयपूर में गुजरा जादातर.. और छुट्टीयों मे हम जो मदर फादर की जगाह हैं टौंक.. वहा जाया करते थे.. तो वो भी.. एक तरहा से बचपन मेरा वहा भी गुजरा है..तो टौंक का कुछ माहौल.. वहाँ का पेस.. वहाँ का… जैसे वक्त रुक गया है..ठहरा हुआ है.. ऐसा एहसास बचपन मैं.. आपको हुआ है..

प्रश्न – टौंक में जो समय गुजरा है.. उसी वक्त आपको एक्टींग जैसी चीज करनी है, ऐसा एहसास हुआ.. ऐसा कुछ..?

इरफान – नहीं.. ऐसा कुछ नहीं था.. उस वक्त सिर्फ एक्सप्लोर कर रहे थे.. बस ये है के वहा बच्चो मे ये जरुर था की कहानियाँ.. अपना जो है नाटक करने की कोशिश करते थे.. दोपहर मे सब लोक सो रहे है.. कही पिछे कोई कमरा है.. जो खाली है.. और थंडा है… वहाँ जाके कुछ यु नो…बदमाशियॉ भी कर रहै है.. और कहानियाँ भी बना रहै है.. तो वो एक छोटासा फॅसिनेशन था.. कहानी का फॅसिनेशन हमेशा बचपन से रहा है..

फिर आप कहानियाँ ढूंढते थे.. रेडिओ पे ढूंढ रहै हे आप रात को.. जयपूर अजमेर रेडिओ स्टेशन से एक ड्रामा आया करता था.. साडे नौ बजे.. आधे घंटे का.. तो उसका हम वेट करते थे. कब आएगा वो..और उसके बाद रात ग्याराह साडे ग्याराह बजे बीबीसी कही लग गया…और वहा कुछ स्टोरीज, या ड्रामा लग गया.. तो बिल्कुल चुंबक की तरह चिपक जाते थे हमलोग रेडिओ से..

लेकीन बिल्कुल सोचा नहीं था की हम इस फिल्ड मे आएंगे.. या एक्स्प्लोर करेंगे..

प्रश्न – रेडिओ से अलग और कौन सी चिजे है जो आप के लिए कल्चलर इन्सिपरेशन का कोई सोर्स बन गयी…

इरफान – फिल्मे हमारे यहा देखने की इजाजत नहीं थी..हमारे चाचा जब आया करते थे साल मे एखाद बार.. तो वो ये होता था की वो हमें सिनेमा देखने लेके जाएंगे..उनका यहीं होता था की.. वो हमे कुछ पैसे देके जाते थे..और पुरा खानदान जो है.. परिवार जो है.. फिल्म देखने जाया करता था..

टौंक मे जो हमारे खाला का घऱ था.. वहा तो बडे बडे घऱ होते है.. तो उनका अहाता और सिनेमा हॉल का अहाता एक था.. मतलब की दीवार एक थी…दरवाजा खोल के अंदर जाओगे तो सिनेमा हॉल में चले जाओगे. जो चेक करने वाली थी वो भी एक औरत थी.. तो वो हमारे खाला को केहती थी वो बच्चे आ रहे है तो इनको बेठा दो कही पे.. कहा से फिल्म शुरु हुई है तो हमें ओर कही पे बीठा दीया जाता था.

प्रश्न – फीर वो कौन से ऐसे सरक्मस्टासेंस थे के आपने सोचा के मुझे भी फिल्मो में एक्टींग करनी चाहीये या फीर एक्टींग चाहीये

इरफान – हा एक्च्युली वो टीनएजर का दोर था जब सिनेमा से ही ये ललक हुई की मैं भी ये करना चाहुंगा. उस मे कई एक्टर का हाथ है उस मे नसीर साहब का बहोत बडा हाथ है. नसीर साहब ने जो कीया उसमै एसा लगा की ये दुनीया एक्स्प्लोर की जा सकती है बहौत.. और इसमे मै अपने आप को झोंक सकता हू…

प्रश्न – ये उम्र का कौनसा पडाव था..

इरफान – आय थिंक जब मै 16 साल का था.. चौदा या सोला साल का.. शायद.. मिथुन चक्रवर्ती की म्रिग्या रीलिज हुई थी उस वक्त.. और किसी ने बोल दिया की तेरी सुरत मिथुनजी से मिलती है.. तो मुझे एक तरह का जो है.. अशुरन्स मिल गया की अच्छा मै मतलब एक्टर बन सकता हू. (दोनो उतहासात्मक हसते है..)

तै मै भी उनके तरह बाल रखने लगा.. अब कभी कभी पैसे आपके पास आ जाते थे.. हेअर ड्रायक किसी किसी बार्बर के पास होता था.. सब के पास नहीं होता था.. तो वो एक स्पेशल चीज होती थी.. की जाके आपने अपने बाल सिथे करवा लिए.. एक ही रहता था वो हेअर ड्रायर का असर.. दुसरे दिन वो खतम होने लगता था.. (वापस दोनो हसते है..)

तो.. बिल्कुल सक्त बाल थे मेरे.. घुंगडालू बाल थे.. और सक्त बालों को आप सीथे तो करवा लिए.. लेकीन थोडे दिनों बाद एकदम अजिब शक्ल हो जाया करती थी.. उसमे मेरे कुछ फोटोग्राफ्स भी है..

प्रश्न – फिर मेरे ख्याल से आर एनएसडी आ गए…

इरफान – जी.. एनएसडी आ गया..

प्रश्न – एनसडी आने की कहानी अगर सनसनी तौर पर देखे तो क्या है..

इरफान – युसूफ खोरम जो जयपूर मे थिएटर कर रहे थे..उन्होने मुझे बताया की.. ये जो तुमने फिल्म कल देखी थी जुनून और उसमे जो राजेश मेख है वो जो है.. वो बहौत कमाल का एक्टर है.. वो तो इन सब से बडा एक्टर है.. वो तो करता नहीं है रोल.. और वो जो उसने बाबा का रोल किया था.. बाबा का रोल उसने ऐसा किया था की यार ये इसने किया है की ये ऐसे ही आदमी है.. मतलब मिथ की तरह.. जाहू की तरह छू ली वो स्टोरी मुझे.. के एक ऐसी जगाह है.. जहा ये सिखा जा सकता है…

प्रश्न – और वो जगह है.. एनएसडी..

इरफान – वो जगह है एनएसडी.. ये जब मुझे पता चला तो मै फिर मुझे और कुछ नहीं दिखा मुझे..

प्रश्न – मुंबई पहोंचने के बाद लंबा अरसा अपनी तरह के फिल्मो मिलने का गुजरा. तो ये क्या कुछ इस तरह का था की आप कर रहे थे और थक रहे थे हार रहे थे..

इरफान – अ…मुझे दिशा जो दे रही थी चीज वो सिर्फ ये थी के मै अपने आप को स्क्रिन पे एन्जॉय करना चाह रहा था.. और वो एक ट्रेनिंग का एक दौर था.. नॅशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के बाद भी जो.. आप कॅमेरे के सामने अपने आप को इजी करने की कोशिस करते रहे. तो उसमे मुझे जो है बहोत ज्यादा भटकने नहीं दिया..

मै इसी मे उलझा रहा के..मै कब ऐसा काम करुंगा की मुझे देखके अपने आप को अच्छा लगेगा… और मेरा जो है.. पर्सनल टेम्परमेन्ट भी जो उसमे कही ना कही उसका हाथ है… के मै बात करके बहौत ज्यादा लोगों को मुताहसिर नहीं कर सकता. मैने शुरु मे कोशिस की क्योंकी झटपटाहट थी की सिनेमा में मिले काम. तो मैने मिलने की कोशिस की. और जिस तरह से एक तरीका है मिलने का.. के फोटोग्राफ्स वैगेरा लेके जाते है.. वो सब करने की कोशिश की और करने के बाद..एहसास हुआ के.. मैने अभी जो ये एक्ट किया है.. मै अभी मिलने गया था..उसको कहीं ना कहीं आप सेन्स भी करत पाते है ना.. कहीं ना कहीं उसका असर क्या हो रहा है.. वो लग रहा था की वो असर जो है उल्टा हो रहा है एक्च्युली…

मै किसी को मुतासिर करने आया हू..उसने शायद इस मिटिंग के बाद अब वो कभी मेरे साथ काम नहीं करेगा..

हार का कभी सेन्स उस तरह से नहीं होता था.. आप को हमेशा कुछ न कुछ कॉन्कर करने के लिए रहा है.. ये कर लो.. उस के बाद ये कर लो.. उस बाद और ये कर लो.. तो वैसा कभी मौका नहीं आया के.. बैठ के आप सोच रहै हो… आप को लग रहा है…. बोरिअत का जोर हुआ..की बहोत बोरिअत हुई.. आप लगा की ये एक्टींग जो मै कर रहा हू… अब ये दिल लग नहीं रहा है इसमे..

तौ ऐसा एहसास हुआ की छोड देते है.. कुछ और करते है… और वो क्या करेंगे उतने तक तो नौबत नहीं आयी…लेकीन ऐसा एहसास जरूर हुआ के यार ब्बास.. अब मजा नहीं आ रहा..

प्रश्न – फिर कब से मजा आना शुरु हुआ?

इरफान – फिर एक्च्युली उसी दौरान स्टार बेस्ट सेलर्स करके एक प्रोग्राम शुरु हुआ था.. वहाँ फिर मेरा शुरु हुआ. फिर उसके बाद किस्मत से जो है एक के बाद एक चीजें मुझे मिलती भी गयी…उसी के बाद जो है वॉरिअर मिल गयी मुझे.. वॉरिअरने सडनली मेरी दिशाही बदल दी.. तो उसने मुझे बदल दिया एकदम.

मै उसके लिया बना नहीं था वो जो काम शुरु हो रहा था.. मै एन्जॉय नहीं कर रहा था उस एक्सपिरीअन्स को.. की मुझे ध्यान रखना पडे की कितना पैसा खर्चा हो रहा है..और कितना कहा से कैसे बचाया जाए.. और फिर चॅनल की इनसिक्योरिटी.. के अप्रूव्ह हुआ की नहीं हुआ.. एन्झायटी मुझसे जो है…. मै एन्झायटी से जो है दूर भागता हू.. एन्झायटी से जो है मेरी जद्दोजहद है पुरानी.. और तिग्मांशू के साथ जो काम शुरु हुआ उसने काही चेंच किया.. पर उसके बाद फिर वापस से ढर्हा.. फिर ढर्हा बनने लग गया.. फिर वापस उस तरह के रोल मिलने लगते है.. हासिल से सारे निगेटीव्ह कॅरेक्टर आपके सामने आने लगते है.. हासिल को मै निगेटीव्ह-पॉझिटिव्ह मैं नही डालता.. वो एक ऐसा कॅरेक्टर था जो के आप को उभर के जाता है पुरा.. उस तरह फिर किरदार मिलने मे टाईम लग गया है..

प्रश्न – मतलब शायद इस तरह का होता होगा की शायद डायरेक्टर को जानते है… वो आपके पोटेन्शिअल के हिसाब से आप को असाईन करते है.. जब के दुसरे लोग निगेटीव्ह या एक कम्फर्टेबल चॉईस की तरहा आप को लेते है..

इरफान – हा क्योंकी आपका नाम है. आपको एज एन एक्टर जो है लोग आपको पहचानते है.. लोगों को लगता है की हां इस पुरी फिल्म के अंदर इसकी जगाह है. पर इसकी जगाह ये है.. तो ये जो है.. हमारा पुरा पॅकेज जो है अच्छा बन जाता है अगर ये भी आता है.. लेकीन आप को उसमे जादा एक्स्प्लोर करने के लिए मिलता नहीं है..

प्रश्न – एक बहौत ही सोचने समझने वाला एक्टर जब फिल्मों की इस नॉर्मल रॅट की दौड मै शामिल होता है.. तो ऐसे तमाम एक्सपिरीअन्सेस होते है.. जो आपको कई बार कोने में हसने को मजबूर करते है

इरफान – बहौत सारी फिल्मे है जिन्हों मे अलग अलग वजहों से काम कर लिया था.. और कर ने के बाद पता चला की ये जो है गलत स्टेप था.. और वो एक्सपेरिमेन्टम अगर आप को करना है तो उससे गुजरना होगा आपको..

हर जॉब जो है..वो इस तरह से डिवायडेड है.. के आप इसका इस्तेमाल करके आप सिर्फ अपनी सिक्योरिटी पुरी करना चाहते है.. या फिर ये काम जो है इस काम मै आप का अपना पर्सनल कनेक्शन है.. इसके के नहीं.. तो इस तरहा का डिवायडर हर काम मै है..

मै कहानी ढूंढता रहता हू..और काश ऐसा हो की कहानीयॉ मुझे ढूंढे.. मेरा कहानी मेरा रिलिजन है..जब तक मै कहानियॉ सुना रहा हू.. और कहानी की तलाश तो मेरी जारी है ऐसा नहीं है की मेरे पास बहौत से कहानी सुनाने वाले है.. क्योंकी मै तो सुना नहीं सकता.. मै तो उसमे पार्ट हू एक.. उस मशिनरी का एक पूर्जा हू.. मुझे डिपेंड करना पडेगा कहानी सुनाने वाले पे.. जो डिरेक्टर है.. और मेरा हमेशा कहानी सुनाने वाले से.. एक स्पेशल रिश्ता होता है.. जब मै उस कहानी से जुडा हुआ होता हू.. तो मेरा एक्च्युली अंदर से एक लव अफेअर होता है उस आदमी के साथ.. क्योंकी वो एक ऐसी दुनिया में ले जा रहा है जहा उस दुनिया में घुसने को इन्स्पायर कर रहा है..

प्रश्न – फिल्म में कौनसी ऐसी चीज होती है जिसको करने से आप कतराते है या भागते है..

इरफान – जो ना तो एन्टरटेन कर रहीं है और ना ही किसी लेव्हल पे नहीं है.. कुछ फिल्मे होती है जो सतेह होती है.. लेकीन एन्टरटेन करती है.. या कोई आदमी जो है ये जताने की कोशिश करा है की मै सोसायटी के बारे मै कन्सर्न हू. और सिनेमा इस लिए करना चाहता हू की मै इस मुद्दे पे बात करना चाहता हू… मै ऐसे लोगों पे बिलिव्ह नहीं करता.. क्योंकी वो एक मुद्दे का सहारा लेके अपने आप को फिल्मों मे इस्टॅबल्शिश करना चाहते है.. मुद्दे से उनका कोई लेना देना नहीं है.. और मुद्दे जो है फिल्म के अंदर किस तरह से स्मगल किए जाने चाहीए, इसके लिए आपको फिल्म क्राफ्ट को समझना चाहीए.. ये कोशिस मेरी दस साल से है.. तिग्मांशू की भी यही कोशिश है.. की हम एन्टरटेन्मेन्ट को जो है दुबारा से देखे, रीडिफाईन करे..

प्रश्न – लेकीन अगर इस सवाल में उलझने का मौका मिले तो शायद ये है के फिल्म अगर मुनाफा आपको न दे याने के उसका लोकप्रिय अपिल है, उसकी पहली शर्त है.. तब इस तरह से उसे एक कॉन्फरमिस्ट रोल प्ले करना पडेगा. सोसायटी मे इस तरह केटर करना पडेगा सिनेमा को, के लोग देखे खूष हो जाए, और अलगे दिन अपने काम धंदो मे लग जाए..

इरफान – इसमें दो चीजे इन्वॉल्व है. एक तो पैसा. और दुसरा पॅशन. ये दो चीजों का टकराव हमेशा इमने चला रहेगा. और हमेशा अपनी तरफ सिनेमा खिचता रहेगा… कुछ एरीया मे पैसे की तरफ.. और कुछ एरिया मे पॅशन की तरफ. तो इसीलिए एक्सपिरिमेन्ट होता है.. इसीलिए ऐसे डिरेक्टर आते है जिनके सिनेमा क्लासिक हो जाते है..

प्रश्न – आपने तिग्मांशू धुलिया का जिकर किया. जिनके साथ आप लंबे समय से जुडे रहै. हासिल से लेकर पान सिंग तोमर तक.. पान सिंग तोमर फिल्म से जुडे सिलसिले को जानना चाएंगे..

इरफान – ये कहानी जो है मुझे सुनानी थी. और किरदार पे जितना रिसर्च किया था उसने जो है दिलस को जिस तरह से गुदगुदाया था.. या जैसे मेरे दिल को पकडा था वो बडा मजेदार था.. और उसको जिने का मेरा मन करता था.. के मै ये करुंगा.. पान सिंग की दुनिया वैसी है.. अम्युझ करता है.. मासूम है..अजीब सी बहादुरी है.. वो बहादुरी बहौत आकर्षक लगती थी मुझे उसकी.. और कहीं ना कहीं मुझे उसमे मेरे फादर की भी झलक दिखती थी उसमे.. तिग्मांशू के अंदर की भी एक दुनिया है.. जो रायटींग में निकल के आयी.. एक पाकिझगी थी उसकी कहानी में. तो उसने मुझे बहौत फॅसिनेट किया..

के मासूम आदमी का.. एक तरह से मासून कम्पॅरेटीव्हली जो के देश के दौड रहा है.. खेल रहा है. और स्पोर्ट की अपनी एक प्युओरिटी होती है.. अपनी एक सादगी होती है.. उसका अपना एक बहौत पॅशन होता है.. उस तरह का आदमी जिसके साथ बेईमानी हो गयी..जिसी की जमीन हे छोटी-मोटी.. और जिससे वो छिन ली गयी… और किसान से अगर जमीन छिन ली जाए तो वो कहा जाएगा.. क्या करेगा.. और सिस्टम उसकी टेक केअर नहीं कर सका.. तो वो सिस्टम को.. उस संदर्भ में बूनता है. वो आज के संदर्भ ममै बात नहीं है.. यहीं कहानी का पावर है.. के कैसे लोग किस बात को कहा रिलेट करते है.. और बात जिंन्दा हो जाती है..

ये फिल्म मेरे लिए एक अहम फिल्म है..

प्रश्न – कुछ मुव्हमेन्ट फिल्म के जो आप को पर्सनली लगते है के बहोत पॅशनेटली दुबारा देखना चाहेते है..

इरफान – मै देख चुका हू तीन चार बार.. पाच बार.. बहोत सारे मूव्हमेन्ट्स है.. फिल्म के कुछे किस्से है जो शूट किए थे लेकीन रहे नहीं फिल्म के अंदर.. बाकी फिल्म के तो लोगों ने देखे है.. लेकीन एक आध जो बडे मजेदार मूव्हमेन्ट है.. एक स्टेज और थी इस फिल्म के अंदर जहाँ से मेरी एज शुरु होती है… उसके पेहले की एज.. 17-18 साल का जब वो था..और मैने तिग्मान्शू को कहा के यार ये वाला पार्ट मै नहीं प्ले करुंगा.. उसने कहा क्यू यार क्यूं नहीं.. मैने कहा नहीं यार.. मै लग सकता ये.. मे 16 साल का नहीं लग सकता.. और मै नहीं बन सकता 16 साल का.. मै एक्ट कर लूंगा.. लेकिन सिनेमा में 16 साल का कैसे लगूंगा.. लेस्ट फाईंड समबडी.. और हम ढूंढने लगे.. तिग्मान्शू के भी ये बात समझ में आ गयी के बात तो सहीं है..

तो कुछ तीन-चार सीन थे.. उस दौर के.. तो ढूंढने लगे.. कोई मिला नहीं.. एक लडका मिला जिसकी के थोडे फिचर्स मुझसे मिलते जुलते थे.. गोरा था..उसको जो है पेन्ट कर के ब्लॅक करने की कोशिश कर रहे हैं.. टॅन करने की कोशिश कर रहे है.. इस जद्दोजहद मे चला गया..

दो दिन में शूटिंग थी.. उसके एक दिन पहले कुछ नए रिक्रूट्स को बुलाया गया. और सडनली 15-20 लोग ऐसे चल के आ रहे थे..और मे और तिग्मान्शू बैठे हुए थे.. मेरे मूह से निकला – अरे देखो वो आ रहा पान सिंग.. ओर उनमे एक लडका था.. जिसको कुछ भी करने की जरुरत नहीं थी.. मेरे जैसे ही दिखने वाला एक लडका.. खूबसुरत.. मेरे से ज्यादा मासूम.. और मेरे जैसा.. सिर्फ उसके बाल थोडे कटे हुए थे.. मैने कहा.. ये आ गया पान सिंग.. उसके बाद उसके कुछ सीन थे के वो घर से जाता है.. मिरची खरीदने के लिए.. और वहा मिरची की दुकान पर पेम्पेलेट्स बाटे जा रहे हैं.. आर्मी में आओ.. आर्मी में आओ.. भरती हो जाओ.. वो पॅम्पलेट देखता है और डिसाईड कर लेता है की मै आर्मी मे जाऊंगा..

तो वहा ट्रॅक्टर जो है जिसमें वो जा रहा था उडपी तक.. ट्रॅक्टर खराब हो जाता है.. तो वो ड्रायवर से पुछता है की कितना टाईम लगेगा और उडपी कितनी दूर है.. तो उसे पता चलता है 20 किलोमीटर है.. तो वो वहाँ से भागना शुरु करता है. तो ट्रॅक्टर का ड्रायवर कहता भी है के देख लो इसको पडा हुआ मिलेगा किसी रास्ते पे ये.. तो वो बडे अम्युझिंग और एन्डोरिंग सीन्स थे उसके..

प्रश्न – ये तो वो सीन्स है जो काट दिए गए… लेकिन जो है उनके बारे मे जिक्र किजीए..

इरफान – मुझे बहोत सारे सीन्स पसंद है जीसमें.. आऊटबॉक्स एक था.. जिस में मेरा एक था ध्यान था उसके उपर.. की ये इस फिल्म का न्यूक्लिअस है. और ये जो है कहीं ना कही हमारी ऑडिअन्स के जहन में ये सवाल छोडना है के बात भाई की जमीन मारने की नहीं है.. बात कुछ और है बडी.. और मुझे उसका जवाब चाहीए.. वो चाह रहा था की कहीं ना कहीं ये ऑडिएन्स के लिए सवाल बन जाए..

कुछ सीन है जो आर्मी मे मिलने जाता है. तब उसको एहसास हो जाता है की ये जो है… ये मेरी जिन्दगी का लास्ट पडाव है.. मेरे ख्याल से इतकी क्लिएरिटी से नहीं होता.. बस एक खुनक होती है.. के मिल लू मै अपने पुराने लोगों से.. एक बार देख आऊ जरा.. कोच से जरा मिल आऊ.. बीवी से मिल लू.. फिर हम रेडी है.. तो ये बच्चे से मिलने जाता है.. और वहा अपने पास आने नहीं देता बच्चे को के लोगों के ये लगेगा के ये उसका बच्चा है.. तो वो पास ना आने देना.. और दूर खडे खडे बात करना.. फिर उसका पलट के जाना.. आर्मी की ड्रेस में उसका बच्चा दूर चला जा रहा है… औऱ वो देख रहा है.. उसमे कूछ है उसके अंदर, वो अभिमान है.. खूशी के कुछ आसू है.. कुछ ना करते हुए भी वो सीन ऐसा है की उसमे कूछ तो है..

माही के साथ भी ऐसा ही सीन था.. जब कोच के यहा से वो काजू लेके आता है.. बादाम काजू लेके आता है.. माही को जब वो छोड के जा रहा है.. तब उसके आँख से आसू टपकता है.. वो कह रही है की सरेंडर कर दो.. सरेंडक कर दो.. तो उसपन पानसिंग केहता है की तुम्हाला जो ज्योतिष पंडीत है वो बकवास है.. वो सरेंडर सरेंडर करता है.. उस सरेंडर का मतबल कुछ और होता है.. सरेंडर सबको ही करना है एक ना एक दिन..

प्रश्न – जो आपकी जाती जिन्दगी है.. बच्चे भी है.. बीवी भी है.. ये सब कुछ करके उनके लिए आप कितना वक्त दे पाते है..

इरफान – मतलब पूरी कोशिश रेहती है की वहाँ.. बच्चो को बडा होते देखा जाए.. एसा लम्बा शेड्यूल होता है..तो उस पे रोना तो आता है बहोत.. और बच्चो का बडे होते हुए देखना मिस होना सबसे बडा खल होता है…लेकीन ये हर जॉब के अपन अपने वो है.. मै कोशिश करता हू की जहा भी शूट कर रहा हू.. वहा बुला लू.. पेहली बार ऐसा हुआ है की दो महिने का शेड्यूल कर के आया हू.. और मै उनको नहीं बुला पाया हू.. इससे पेहले ऐसा नहीं हुआ है.. तो कोई ना कोई विंडो मैने ढूंढ ली है.. चाहे मै अमेरिका में हू, या साऊथ अफ्रिका में हू, तो उनको 10-15 दिन के लिए बुला लू.. देखते है आगे कैसे शेप अप होता है..

हेही इंटरेस्टिंग आहे...

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